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जैसे गरमी के दिनों में लंबी सड़क पर चलते चलते
बरगद की छांव मिल जाये
ऐसी होती है माँ की गोद
चुप चाप बैठ कर घंटों रोने का मन करता है
बहुत से आंसू…जाने कब से इकट्ठे हो गए हैं
सारे बहा सकूं एक दिन शायद मैं
कई बार हो जाती है सारी दुनिया एक तरफ
और सैकड़ों सवालों में बेध देते हैं मन को
उस वक़्त तुम मेरी ढाल बनी हो माँ
आंसू भले तुम्हारी आँखों से बह रहे हो
उनका दर्द यहाँ मीलो दूर बैठ कर मैं महसूस करती हूँ
इसलिये हँस नहीं पाती हूँ
जिंदगी बिल्कुल ही बोझिल हो गयी है
साँसे चुभती हैं सीने में जैसे भूचाल सा आ जता है
और धुएँ की तरह उड़ जाने का मन करता है
कश पर कश…मेरे सामने वो धुआं उड़ाते रहते हैं
मैं उस धुंए में खुद को देखती हूँ
बिखरते हुये…सिमटते हुये
माँ…फिर वही राह है…वही सारे लोग हैं और वही जिंदगी
फिर से जिंदगी ने एक पेचीदा सवाल मेरे सामने फेंका है
तुम कहॉ हो
रात को जैसे bournvita बाना के देती थी
सुबह time पे उठा देती थी
मैं ऐसे ही थोड़े इस जगह पर पहुंची हूँ
मेरे exams में रात भर तुम भी तो जगी हो
मेरे रिजल्ट्स में मेरे साथ तुम भी तो घबरायी हो
पर हर बार माँ
तुमने मुझे विश्वास दिलाया है
कि मैं हासिल कर सकती हूँ…वो हर मंज़िल जिसपर मेरी नज़र है
और आज
आज जब मेरी आंखों की रौशनी जा रही है
मेरी सोच दायरों में बंधने लगी है
मेरी उड़ान सीमित हो गयी है
ये डरा हुआ मन हर पल तुमको ढूँढता है
तुम कहॉ हो माँ ?
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